योगी सरकार की मंशा पर पलीता लगाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ रहे है आला अधिकारी
मऊ कोनेताविहीन जिला मान मलाई काट रहे अधिकारी
DEVA TV
(मधुसूदन तिवारी संवाददाता)
मऊ। जी हां यदि आप जनपद मऊ के रहने वाले हैं तो आप सावधान हो जाइए? क्योंकि यह नेताविहीन जिला है और यह बात मैं नहीं कह रहा बल्कि यहां के आला अधिकारियों की बातचीत और कार्यशैली से यह पता चल सकता है।हम बात उठाते हैं पंचायती राज विभाग की यहां पर साहब घोटाला ही घोटाला है, उत्तर प्रदेश सरकार का यही एक ऐसा विभाग है जिससे ग्रामीण आम जनता का सीधा सरोकार होता है।मगर यह कहने में कत्तई गुरेज नहीं कि इस विभाग ने सरकार की मंशा का पलीता लगाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ता। सरकार किसी पार्टी की हो हर राजा चाहता है मेरी जनता सुखी रहे और यही सोचकर पूर्व प्रधानमंत्री स्व० राजीव गांधी ने पंचायती राज व्यवस्था को स्वतंत्र अधिकार दिया, जिसके माध्यम से ग्रामीण क्षेत्रों का समुचित विकास हो सके परंतु तत्कालीन समय में भी यह व्यवस्था भ्रष्टाचार की जड़ बनी और आप लोग भी यह बात सुनें होंगे कि सरकार का एक रुपया गांव तक पहुंचते पहुंचते 10 पैसा ही बच जाता है।और इन्हीं सब बातों को बताकर तत्कालीन सरकार ने यह व्यवस्था बनाई और कहा कि अब पैसा ऊपर से नहीं नीचे से ही प्रस्तावित होगी।जिसके अंतर्गत अब ग्राम सभाएं अपने विकास की कार्ययोजना बनाकर प्रस्ताव देंगें और उसके बाद पैसा दिया जाएगा।यह योजना वास्तव में ही बहुत अच्छी है और इससे ग्राम सभाओं में करोड़ों रुपया आने लगा।इसकी सुचिता बनाए रखने के लिए सरकार मनरेगा से लेकर अन्य व्यवस्थाओं में सीधे खाते में पैसा भेजने का प्रावधान किया किया मगर हालत वही तूं डाल- डाल मैं पात-पात, मनरेगा का जाबकार्ड अपात्रों एवं अपने चहेतों का बनाकर खूब लूट होने लगी।और इस काम में सिर्फ ग्राम प्रधान को बदनाम किया जाने लगा,मगर साहब इसकी सच्चाई कुछ और है। पिछले चुनाव में बहुत से ग्राम प्रधान नवयुवक हुए और यह ईमानदारी से प्रयास भी किए मगर उनको भी बेईमानी करने के लिए विभाग के आला अधिकारी मजबूर कर दिए।बिना कमीशन के कोई एक ईंट नहीं रख सकता।और नाम आने लगा कि ग्राम विकास अधिकारी एवं सचिव चलने नहीं दे रहे हैं और लिफाफ मांग रहे हैं।और हम भी तो यही जानते थे और बेचारे सचिवों को गलत निगाह से देखते थे मगर इसकी जब हकीकत जाननी चाही तो मामला कुछ और आगे बढ़ा और सूत्रों के माध्यम से पता चला कि विभाग के बड़े अधिकारी गलत काम करने के लिए मजबूर कर रहे हैं। यदि उनका कहना नहीं सुना जाता को कार्यों की जांचकर या तो सस्पेंड कर देते हैं या क्षेत्र बदलकर दूर भेज देते हैं और मोटी रकम लेकर बहाल कर देते हैं।और यह खेल मऊ जनपद में खूब चला एक ग्राम पंचायत अधिकारी तो बेचारा रोने लगा। कहने लगा किसी तरह जुटाकर अभी आधा दिया हूं लेकिन बहाल नहीं कर रहे हैं।कह रहे पूरा दोगे तब बहाल करूंगा।अब आखिर इसमें सरकार की क्या गलती सरकार तो भ्रष्टाचार दूर करने के लिए डोंगल सिस्टम लागू किया। क्लस्टर लगाया मगर कोई फायदा यहां होते नहीं दिखाई दे रहा है। बल्कि इनका श्रोत दिन दूना बढ़ रहा है।और जनपद मऊ में इसका कुछ ज्यादा असर दिखता है। क्योंकि यहां इन अधिकारियों पर अंकुश लगाने वाला कोई दमदार नेता नहीं है।जो हैं भी वह अपनी कुर्सी पाने और बचाने में लगे हैं।इस मामले को जब भाजपा जिलाध्यक्ष प्रवीण गुप्ता ने संज्ञान लिया और विभाग के अधिकारी से सचिवों के ट्रांसफर और बहाली का खेल जानना चाहा तो महोदय टाल मटोल करने लगे।अब जिलाध्यक्ष बेचारे भी क्या करें उनको क्या पता इसकी जड़ कितनी मजबूत है और यह सब बड़े साहब हैंडल हो रहा है। क्योंकि सचिव का ट्रांसफर पोस्टिंग तो मझोले साहब के जिम्मे है और मझोले साहब बेचारे सीधे साधे हैं ।इसलिए सारा चार्ज छोटे साहब के जिम्मे ही आ गया है।अब आखिर कौन इन साहबों की खोज खबर लेगा चुनाव सर पर है सरकार भी अपनी छवि सुधारने के लिए कोई कोर कसर नहीं छोड़ रही है।जहां एक ओर अपने कार्यकर्ताओं को संतुष्ट करने के लिए प्रभारियों को जिम्मेदारी दी है वहीं मीडिया के माध्यम से अपनी बात जन-जन में पहुंचाने का प्रयास कर रही है।मगर इन आलाअधिकारियों ने भी सरकार की मंशा का पलीता लगाने के लिए भी मन बना लिया है।जनपद वर्षों से पड़े यह अधिकारी कोई न कोई कमी निकालकर आम जन का भयादोहन कर रहे हैं।इसका जीता जागता उदाहरण इन दिनों नगर में देखा जा सकता है।जहां पर नगर क्षेत्र के हर निर्माण कार्य को ग़लत बताकर नोटिस देकर रोक दिया जा रहा है।मगर अंदर अंदर जो लोग सेटिंग कर ले रहे हैं उनका कोई काम नहीं रुक है। एक सत्तारूढ़ पार्टी के कार्यकर्ता ही कहने लगे कि बड़े साहब ईमानदारी का चोला पहनकर मौनी बाबा बने हैं।इनकी हालत वही है कि "बड़े हुए तो क्या हुए जैसे पेड़ खजूर,पंक्षी को न छाया मिले फल लागे अति दूर" वाली हाल है।जब मैंने उनकी पीड़ा का कारण समझना चाहा तो व्यथित हो कहने लगे कि इनके पास कोई जनसमस्या लेकर जाओ तो सीधा मुंह बात ही नहीं करते और नहीं तो ऐसा उल्टा बोलते हैं कि बेईज्जती हो जाती है।बेचारा यहां तक कह दिया कि वह ऐसे फूल हैं न महकते हैं न बदबू करते हैं।अब भाई इनकी व्यथा सुनकर तो यही मन दुखी हो गया।अब सवाल यह उठता है कि क्या मऊ ऐसे ही लुटता रहेगा और इसके खिलाफ आवाज उठाने वाले के खिलाफ या तो एफआईआर कर दी जाती है या उसको अधिकारियों द्वारा किसी न किसी बहाने बेईज्जत कर दिया जाता है।जब सत्तारुढ दल के एक बड़े पदाधिकारी से इस संबंध में अवगत कराकर इस मर्ज का इलाज जानना चाहा तो बताए कि यह अधिकारी एक साथ ज्यादा दिन से जनपद में जमें हुए हैं और सबकी औकात जानकर अपनी सेटिंग कर लिए हैं।जब एक साथ इनका ट्रांसफर हो और जनपद में नए अधिकारी आएं तभी कुछ हो सकता है।अब भाई जब पार्टी के बड़े पदाधिकारी ही इतने व्यथित हैं तो पिपक्ष वाले 'किस खेत मूली'। बहरहाल उत्तर प्रदेश में दुबारा सत्ता पाने के लिए उतावली सरकार यदि समय रहते अपने कार्यकर्ताओं का सम्मान नहीं बचा पाई और इन मोटी चमड़ी वाले साहबों का ईलाज नहीं की तो इनके मंजूबो पर पानी फेरने में यह अधिकारी कोई कोर कसर नहीं छोड़ने वाले। अभी अन्य विभागों का हाल भी जानना शेष है।
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